भारत मे नैतिक नेतृत्व

Team IIBP Anveshan, Emotional Intelligence, General Psychology, Issue 10, Mental Health

भारत मे नैतिक नेतृत्व
डा. उषा
भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत 5000 साल पुरानी है। हालांकि सभ्यता के चार मुख्य उद्गम हैं जो पूरब से पश्चिम की ओर प्रस्थान करने वाले चीन, भारत, फर्टाइल क्रिसेंट तथा भूमध्य रेखा, विशेष रूप से ग्रीक और इटली हैं, परंतु भारत अधिक श्रेय का हकदार है क्योंकि भारत मे प्रचलित धर्मो और नये धर्मो के उदय ने एशिया के धार्मिक जीवन को गहन रूप से प्रभावित किया है। भारत ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विश्व के अन्य भागों पर भी अपना प्रभाव छोड़ा है।
भारत के प्राय सभी नेताओ ने सबको यही बताया है कि सभी धर्मो का सम्मान करो|दुनिया में बहुत से धर्म और संस्कृतियाँ हैं और इनमें से प्रत्येक का विकास इस प्रकार से हुआ है कि वह अपने अनुयायियों के अनुरूप हो। इसी कारण यह कहना सही होगा कि जिस धर्म में आपका जन्म हुआ हो, उसी धर्म में बने रहना सबसे अच्छा है। किसी दूसरे धर्म की आलोचना करना गलतहै|
आज की दुनिया में जितनी धार्मिक परम्पराएं हैं, उन्हें दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:एक तो वे जो ईश्वरवादी हैं और दूसरी जो गैर-ईश्वरवादी हैं। बौद्ध धर्म गैर-ईश्वरवादी श्रेणी की धर्म परम्परा है। गैर-ईश्वरवादी धर्मों में कारण-कार्य सिद्धान्त पर बल दिया जाता है। स्वाभाविक है कि इसी कारण बौद्ध धर्म में कारण और कार्य के सिद्धान्त की बड़ी व्याख्या की जाती है, और इसे जानना बड़ा उपयोगी है। उपयोगी इसलिए है क्योंकि इससे हमें स्वयं को और अपने चित्त को और अधिक समझने में सहायता मिलती है।

उदाहरण के लिए हमारे लिए यह समझना ज़रूरी है कि नकारात्मक मनोभाव और दृष्टिकोण हमारी दुख-तकलीफों का स्रोत हैं। दुख और तकलीफों को दूर करने के लिए हमें न केवल उनके भौतिक और शाब्दिक स्तरों पर, बल्कि मानसिक स्तर पर भी ध्य भारत मे नैतिक नेतृत्व
डा. उषा
भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत 5000 साल पुरानी है। हालांकि सभ्यता के चार मुख्य उद्गम हैं जो पूरब से पश्चिम की ओर प्रस्थान करने वाले चीन, भारत, फर्टाइल क्रिसेंट तथा भूमध्य रेखा, विशेष रूप से ग्रीक और इटली हैं, परंतु भारत अधिक श्रेय का हकदार है क्योंकि भारत मे प्रचलित धर्मो और नये धर्मो के उदय ने एशिया के धार्मिक जीवन को गहन रूप से प्रभावित किया है। भारत ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विश्व के अन्य भागों पर भी अपना प्रभाव छोड़ा है।
भारत के प्राय सभी नेताओ ने सबको यही बताया है कि सभी धर्मो का सम्मान करो|दुनिया में बहुत से धर्म और संस्कृतियाँ हैं और इनमें से प्रत्येक का विकास इस प्रकार से हुआ है कि वह अपने अनुयायियों के अनुरूप हो। इसी कारण यह कहना सही होगा कि जिस धर्म में आपका जन्म हुआ हो, उसी धर्म में बने रहना सबसे अच्छा है। किसी दूसरे धर्म की आलोचना करना गलतहै|
आज की दुनिया में जितनी धार्मिक परम्पराएं हैं, उन्हें दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है: एक तो वे जो ईश्वरवादी हैं और दूसरी जो गैर-ईश्वरवादी हैं। बौद्ध धर्म गैर-ईश्वरवादी श्रेणी की धर्म परम्परा है। गैर-ईश्वरवादी धर्मों में कारण-कार्य सिद्धान्त पर बल दिया जाता है। स्वाभाविक है कि इसी कारण बौद्ध धर्म में कारण और कार्य के सिद्धान्त की बड़ी व्याख्या की जाती है, और इसे जानना बड़ा उपयोगी है। उपयोगी इसलिए है

क्योंकि इससे हमें स्वयं को और अपने चित्त को और अधिक समझने में सहायता
मिलती है।
उदाहरण के लिए हमारे लिए यह समझना ज़रूरी है कि नकारात्मक मनोभाव और दृष्टिकोण हमारी दुख-तकलीफों का स्रोत हैं। दुख और तकलीफों को दूर करने के लिए हमें न केवल उनके भौतिक और शाब्दिक स्तरों पर, बल्कि मानसिक स्तर पर भी ध्यान केन्द्रित करना होगा। इन नकारात्मक मनोभावों से मुकाबला करने वाली अधिकांश शक्तियाँ भी मानसिक ही हैं।
भारत की सबसे पुरानी सांस्कृतिक विरासत के रूप में योग को अंतर्राष्ट्रीय पहचान प्रदान करने के लिए हमारे प्रयासों का नेतृत्व हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया है जिन्होंने इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा को यह सुझाव दिया कि संयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि वह 21 जून, 2015 से हर साल 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाए। उम्मीद है कि महासभा 11 दिसंबर, 2014 को प्रधानमंत्री जी के सुझाव का समर्थन करेगी और इसे अपनी मंजूरी प्रदान करेगी। इससे यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में योग को शामिल करने तथा योग को पहचान
प्रदान करने के भारत के मामले को भी मजबूती प्राप्त होगी। स्वामी विवेकानंद ने कहा था
"हम मानते हैं कि हर कोई दिव्य है, भगवान है।
हर आत्मा एक सूर्य है जो अज्ञानता के बादलों से ढका है;
आत्मा और आत्मा के बीच अंतर बादलों की इन परतों की तीव्रता में अंतर की वजह से है।''
योग अज्ञानता के इन बादलों को दूर करके अंतर्राष्ट्रीय विश्वास, अंतर – सांस्कृतिक वार्ता एवं शांति निर्माण का एक तंत्र है। यह विश्व के लिए भारत की विरासत है।

Author

डॉ. उषा श्रीवास्तव
मनोविज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर, उच्च शिक्षा विभाग
सरकार मध्य प्रदेश, भोपाल के

उनकी विशेष रुचि के क्षेत्र हैं व्यक्तित्व विकास और आत्म-विकास, संचार कौशल, करियर अभिविन्यास, लिंग समानता, भारत में कामकाजी महिलाओं की स्थिति और सामाजिक मुद्दे। उसने आधुनिक जीवन जीने के नए तरीकों, उसके बाद के परिणामों और सरल उपायों पर व्यापक रूप से काम किया है। उनकी किताबें: ट्रांजिशन में भारतीय कामकाजी महिलाएं, द आर्ट ऑफ कम्युनिकेशन