बेहतर लीडर बनने में क्रिटिकल थिंकिंग यानी आलोचनात्मक सोच की भूमिका

Team IIBP Anveshan, Emotional Intelligence, General Psychology, Issue 10, Mental Health

बेहतर लीडर बनने में क्रिटिकल थिंकिंग यानी आलोचनात्मक सोच की भूमिका

सतनाम कौर 

 

बहुत कम लोग जानते हैं कि क्रिटिकल थिंकिंग यानी आलोचनात्मक सोच को वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन ने  जीवन को प्रभावी ढंग से जीने के कौशल की श्रेणीं में रखा हैं। यानी जीवन को अगर बेहतर ढंग से जीना हैं तो यह कौशल बहुत महत्वपूर्ण है।

पर सबसे पहला प्रश्न ये आता है की आखिर ये कौशल इतना महत्वपूर्ण क्यों है और खासकर तब जब आप अपने कार्यस्थल पे एक टीम का नेतृत्व कर रहें हों? जब आपके द्वारा लिया गया हर निर्णय आपके साथ काम करने वाली टीम की कार्यकुशलता को प्रभावित करता हो और साथ ही आपके कार्यस्थल की छवि को भी? 

हम जानते हैं कि एक लीडरशिप के पद पर हमें प्रतिदिन कई छोटे बड़े निर्णय लेने पड़ते हैं, पर बहुत कम समय ही ऐसा होता है कि हमे एक सटीक फैसला लेने के लिए जितना समय चाहिए उतना समय हमेशा मिले, जहाँ हम फैसला लेने से पहले परिस्थिति का, अन्य लोगों के मतों, और बाकी कई महत्वपपूर्ण पहलुओं का निरीक्षण कर सकें।

चुनौतियों से भरे कार्यस्थल पे अधिकतर हमे निर्णय जल्दी लेने होते हैं। और समय के अभाव में हम अधिकतर अपने या दूसरों के अनुभवों के आधार पर फैसले लेने को विवश होते हैं। 

पर क्या महत्वपूर्ण फैसले बस अपने या किसी विषय-विशेषज्ञ के अनुभव के आधार पर लेना सही है?

ये कैसे देखा जाए की जिस जानकारी के आधार पे हम निर्णय ले रहें हैं वो पूर्ण, तर्कसंगत एवं निरीक्षित किये जा सकने वाले आंकड़ों पे आधारित है? उसमें अनजाने में या जानबूझ कर कोई पक्षपात आधारित तथ्य तो नहीं डाले गए? या फिर कहीं हम बस आसानी से और तुरंत उपलब्ध जानकारी पे आधारित निर्णय तो नहीं ले रहें?

इसे बेहतर समझने के लिए पीछे मुड़कर आपके द्वारा लिए गए कुछ खराब निर्णयों पे गौर कीजिये जहाँ निर्णय लेने पूर्व शायद आपने अपने आप से कहा हो की ये निर्णय मैंने क्या सोच कर लिया था? वास्तव में अगर आप इन निर्णयों का फिर से मूल्यांकन करेंगे तो पाएंगे की ये ऐसे निर्णय थे जिसमें आप तर्क पूर्वक नहीं सोच रहे थे और शायद सिर्फ भावनाओ के वेग में निर्णय ले लिए। 

अब चाहे आपने ऐसे किसी व्यक्ति को प्रमोशन दिया हो जिसने आपके लिए गए निर्णयों को कभी चुनौती न दी हो और सैदेव आपकी हाँ में हाँ मिलायी हो या फिर किसी ऐसे व्यक्ति को नौकरी पे इसलिए रखा हो क्यूंकि वो आपकी मातृ भाषा जानता था या फिर किसी ऐसे व्यक्ति को नौकरी से बाहर कर दिया हो जिस के मत से आपका मत बिलकुल नहीं मिलता था।  

निर्णय लेते समय, भावनाओं का वेग जितना तीव्र होता हैं, उतनी ही अधिक आपके निर्णय की तर्क शक्ति धूमिल हो जाती है।

भावनाओं और तर्क के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन होने पर सर्वोत्तम निर्णय लेने की सम्भावन बढ़ जाती है।

एक उदहारण से समझते हैं –

एक सीनियर टीम मेंबर अपने मैनेजर से,”अजय ऑफिस पहुँचने में हमेशा ही लेट रहता हैं, छोटी छोटी बातों को वाद-विवाद बना देता है, मुझे लगता हैं इस नए प्रोजेक्ट की ज़िम्मेदारी उसे नहीं देनी चाहिए।”,

अगर आप अजय के मैनेजर हैं और आप इस सीनियर टीम मेंबर पे भरोसा भी रखते हैं, आपने भी एक-दो बार अजय को ऑफिस लेट आते देखा हैं, और आपका खुद भी अजय से एक-आध बार वाद-विवाद हुआ है, तो कितनी संभावना हैं की आप इस सीनियर टीम मेंबर की बात सुन के अजय को नए प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बनाएंगे?

अगर आप अक्सर अपने निर्णय आसानी से उपलब्ध और विश्वसनीय सूत्रों द्वारा दी गयी जानकारी पे लेते हैं तो संभावना बहुत है की आप अजय को इस नए प्रोजेक्ट का हिस्सा ना बनाएं।

पर समझने वाली बात ये है की आप कैसे जाचेंगे की क्या ये सटीक निर्णय हैं की नहीं?

अच्छी खबर ये है की अपने निर्णयों की सटीकता जानने के लिए आपको सिक्का उछाल के पता लगाने की आवश्यकता नहीं की चिट आया तो निर्णय सही, पट आया तो गलत।

इसके लिए आपको तीन आसान चरणों का पालन करना है और इन चरणों का पालन करने को ही क्रिटिकल थिंकिंग यानी आलोचनत्मक सोच कहते हैं –

१ – पहला चरण –  ये देखें की कहीं आप उस व्यक्ति, या परिस्थति (जिसके बारे में निर्णय लेना हैं) को लेकर कन्फर्मेशन बयेसड यानी पूर्वग्रह का शिकार तो नही? मनोविज्ञान की भाषा में समझें तो यदि एक बार हम किसी व्यक्ति, स्थान, या परिस्थिति आदि के बारे में अपनी राय बना लेते हैं  (राय बनाने का कारण कुछ भी रहा हो) तो हम अपनी राय को सही साबित करने के लिए उन्ही तथ्यों की तरफ ध्यान देते हैं जो हमारी राय को पुख्ता करते हैं और अधिकतर उन तथ्यों को अनदेखा कर देते हैं जो हमारे द्वारा बनाई गयी राय को गलत साबित करने की क्षमता रखतें हैं ।

२ –  दूसरा चरण – अब आपको आपको एक डिटेक्टिव यानी जासूस की तरह सोचना है और हर दिए गए तथ्य, तर्क, आंकड़ों पे विशवास करने से पहले उस जानकारी पे जिज्ञासा से भरे हुए प्रश्न पूछने हैं।  शेरलॉक होल्म्स जो की एक प्रसिद्ध जासूसी कल्पना उपन्यास के नायक हैं अपनी मशहूर पुस्तक बॉस्कोम घाटी रहस्य में कहते हैं कि “सबसे भ्रामक तथ्य वो होते हैं जो साफ़ साफ़ दिख रहें होतें हैं”, आसान शब्दों में कहें तो ये देखना है कि जो जानकारी आपके पास है या आपको मिली है क्या उसका सटीक मुल्यांकन किया जा सकता है? या फिर वो सिर्फ कही सुनी बातों पे आधारित है? यदि मूल्यांकन किया जा सकता है तो मूल्यांकन का आधार क्या है? क्या आंकड़ें, परिस्थियाँ, पुराना अनुभव सब कुछ आपकी जानकारी पुख्ता करता है या कमजोर?

४ – तीसरा चरण – आखिरी में आपको ये पुख्ता करना है की क्या कोई ऐसे सबूत हैं जो मेरे सोचने के तरीके को बदल सकते हैं? ये प्रश्न किसी भी परिस्थिति में काम आता है चाहे आप किसी विषय, वास्तु , व्यक्ति को लेकर सकारात्मक है या नकारात्मक।  ये प्रश्न इस भ्र्म को भी तोड़ता है की क्रटिकल थिंकिंग यानी आलोचनात्मक सोच केवल नकरात्मक परिस्थितिओं में काम आती है। उदहारण के तौर पे जब आप अपनी टीम में किसी को प्रमोट करना चाहते हैं जो की एक सकारात्मक कार्य लग सकता है, तब एक लीडर होने के नाते ये देखना बहुत आवश्यक है की इस प्रमोशन का आधार क्या है? क्या उसे आंकड़ों, तथ्यों, एवं अन्य फीडबैक की कसौटी पे सही साबित किया जा सकता है? इस निर्णेय का बिज़नेस एवं बाकी कर्मियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? 

इन तीन चरणों की पालना आपके निर्णयों को पुख्ता बनती हैं, और आपको जल्दबाजी में निर्णय लेने से रोकती है।

तो ऐसा क्या किया जाए जिससे एक लीडर होने के नाते आप अपनी आलोचनात्मक सोच को और सुदृढ़ कर पाएं?

– किसी विश्वसनीय बॉस, सहकर्मी या कोच से अपने क्रिटिकल थिंकिंग कौशल के बारे में फीडबैक प्राप्त करें। jजिसका अर्थ हैं की क्या आप किसी लक्ष्य की ओर काम करते हुए आसानी से उपलब्ध जानकारी के आधार पे निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं या तर्कपूर्ण, विश्लेषणात्मक प्रक्रिया का उपयोग करते हुए निर्णय लेते हैं?

– निर्णय लेने या निष्कर्ष निकालने से पहले क्या आप डेटा के विभिन्न स्रोतों का उपयोग करते हैं? क्या धारणाओं को तथ्यों से अलग रखने की क्षमता आप में है? अगर नहीं तो अब आप अपने निर्णय के विभिन्न स्रोतों में बढ़ोतरी कैसे कर सकते हैं?

उपरोक्त उपायों का उपयोग ही क्रिटिकल थिंकिंग का आधार है।  यह उपाए इस बात की पुष्टि करेंगे की आपके द्वारा लिए गए निर्णय तर्कपूर्ण और न्याय पूर्ण दोनों हैं और आपकी टीम और कार्यस्थल दोनों के लिए फायदेमंद है।   

वैसे आपको क्या लगता हैं की अजय के मैनेजर ने अजय को नए प्रोजेक्ट में रखा होगा की नहीं?

अजय के मैनेजर ने सिर्फ अपने विश्वसनीय सूत्र की बात पे विश्वाल ना करके, मामले की खुद खोजबीन करने की ठानी।

सबसे पहले उन्होंने अजय का अटेन्डस रिकॉर्ड चेक किया। उन्होंने पाया की अजय का लेट आना पिछले एक महीने से ही है उससे पहले का डाटा उसे एक समय का पाबंद कर्मचारी दिखाता हैं। इस मामले को लेकर थोड़ी और छान बीन से पता चला की अजय पिछले कुछ हफ़्तों से अपनी बेटी के स्कूल के दाखिले को लेकर परेशान था और इसीलिए कई बार उसे ऑफिस पहुँचने में देरी हो रही थी।

इसी के साथ, अजय की वाद विवाद की बात को टटोलने पे पता चला की ऑफिस में दो बार बिना रजिस्टर एंट्री किये सामान बाहर ले जाने की बात को लेकर अजय का वाद विवाद एक सीनियर कर्मचारी के साथ हुआ था। जब उसने नियमों की उलंघना पे अपना असंतोष जताया तो बात को छिपाने के लिए उसे एक बिना वजह बहस करने वाले कर्मचारी की तरह दिखाया जाने लगा। जबकि बाकी लोगों के फीडबैक के अनुसार, अजय नियमो को कड़ाई से पालन करने वाला कर्मचारी था।  

इसी के साथ,  मैनेजर ने अजय से खुद बात की और उसका पहलु समझने की कोशिश की। अजय से बात करने के बाद और बाकी तथ्यों को नजर में रखते हुए, मैनेजर ने निर्णय लिया की अजय को नए प्रोजेक्ट में अवश्य लिया जाना चाहिए। 

 

Author:

सतनाम कौर 

सतनाम को प्रशिक्षण प्रणाली विकास और प्रशिक्षक क्षमता विकास के क्षेत्रों में समृद्ध अनुभव है। सतनाम एक प्रमाणित मास्टर बिहेवियरल स्किल्स फैसिलिटेटर है, और मिडिल अर्थ (सीएएमआई, यूएसए) से एक प्रमाणित शिक्षण और विकास प्रबंधक है। इसी के साथ सतनाम क्रिटिकल थिंकिंग, प्रॉब्लम सॉल्विंग एवं डिसीजन मेकिंग सब्जेक्ट की एक निपुण फेसिलिटेटर हैं इन्हों ने अभी तक 30 से अधिक अलग अलग प्रोफेशनल संगठनो के साथ 700 से अधिक अलग अलग विषयों पे ट्रेनिंग्स दिए हैं। खाली समय में सतनाम को भौतिक विज्ञानं पे आधारित पुस्तकें पढ़ना और इसी विषय पे आधारित वीडियो ब्लोग्स को देखना पसंद हैं।