महामारी, शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य

Team IIBP Anveshan, Emotional Intelligence, General Psychology, Issue 10, Mental Health

कोविड महामारी ने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया है चाहे वो आर्थिक हो, सामाजिक हो, राजनीतिक हो शैक्षणिक हो या मानसिक हो..समाज के हर पहलू अपने गिरफ्त में इस महामारी ने प्रभावित किया है..कुछ इसी तरह हमारा शैक्षिक तंत्र भी इससे अछूता नहीं रहा ..शिक्षा हमारे समाज का सबसे महत्वपूर्ण अंग है ये हमारा भविष्य तो बनाता ही साथ ही साथ वर्तमान और भूतकाल में एक तर्कसंगत रिश्ते बना कर भी रखता है| कोविड महामारी में शिक्षा का परंपरागत रूप पूर्ण रूप से बंद हो गया ,जिसके पश्चात स्कूल, कॉलेज , शिक्षक और छात्रों को खुद तक ही सीमित रहना पड़ा ..यह सामाजिक रूप से एक बहुत बड़ी हानि तो थी ही परंतु एक राष्ट्र निर्माण में भी एक बहुत ही दुखदाई साबित हुआ | छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से जोड़ने की कोशिश शुरू हुई परंतु वह सिर्फ खानापूर्ति ही साबित हुई क्यों की यह पद्धति हमारे छात्रों लिए तो नई थी ही, साथ ही साथ हमारे शिक्षकगण भी इसमें नए ही थे | इस पद्धति से यह पाया गया की किशोरावस्था में बच्चो के अंदर मोबाइल प्रयोग करने की आदत में आश्चर्य रूप से इजाफा हुआ | तत्पश्चात कई अभिभावक इस लत से परेशान हो कर बाल मनोचिकित्सक के पास भी गए और अपनी समस्याओं से रूबरू कराया | इस आदत का एक दूसरा पहलू है शारीरिक पहली अत्यधिक मोबाइल फोन प्रयोग करने से आंखो को रोशनी भी प्रभावित हो रही जो की अभिभावक और बच्चो के लिए एक चिंता का कारण बन रहा जो मानसिक स्थिति को अस्थिर रख रहा | इसके अलावा जिस तरह से परीक्षाओं का न होना , स्कूलों में दाखिला प्रक्रिया में देरी, फीस में छूट न मिलना और प्रतियोगी छात्रों के उम्र में लगातार बढ़ोत्तरी आदि कारकों ने छात्रों और अभिभावकों को चिंता के शिविर में डाल दिया है |

 

महामारी का भविष्य अनंतकाल की तरह कुछ निश्चित नहीं है ये और एक कारक है चिंता को बढ़ाने के लिए ..अभी हाल ही में एक विद्यार्थी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई जिसने यह दलील दी गई की हमारे स्कूल , कॉलेज पुनः पहले की तरह खोले जाए | हम छात्र गण महामारी से बचने के लिए खुद को एक सीमित माहौल में बंद रख हुए है हम महामारी से तो बच जाएंगे परंतु दुश्चिंता, स्व शंका और भविष्य की चिंता हमे मानसिक रूप से बीमार कर देगी यह दिखाता है हम शिक्षा के किस नाजुक दौर से गुजर रहे | इस तरह छात्रों का खासकर प्राइमरी और जूनियर छात्रों का मानसिक , शारीरिक और तार्किक विकास रुक रहा | ऑनलाइन पद्धति विद्यार्थी और छात्र परस्पर क्रिया को बाधित करता है जो को हमारे भारतीय शिक्षा पद्धति में तार्किक और मानसिक विकास की जड़ है, हमे पुनः स्कूलों से छात्रों को जोड़ने के प्रयास करने चाहिए , हमे शैक्षिक रूप से पिछड़े छात्रों की मदद के लिए काउंसलर की व्यवस्था हर स्कूल ,कॉलेज में करनी चाहिए क्यो की इतने समय बाद स्कूलों का पुन खुलना छात्रों के लिए आसान नहीं होगा खुद को ढालना उस माहौल में इसके लिए हमे मनोवैज्ञानिक मदद लेनी चाहिए साथ ही साथ आने वाले वर्षो में हमे मूल्यांकन पद्धति में थोड़ा लचीलापन भी दिखाए जाने की जरूरत है ताकि छात्र मूल्याकन के डर से स्कूल ड्रॉप आउट के केसेज से बचे | और प्रतियोगी छात्रों के लिए सरकार को उम्र में छूट जैसे प्रावधान लाने की जरूरत है जो एक मील का पत्थर कदम साबित हो सकता है उन छात्रों के लिए जो इस महामारी में खुद को मिलने वाले मौकों से वंचित हुए है ,इसके साथ ही अभिभावकों को भी एक महती भूमिका निभानी पड़ेगी ..इस महामारी में छात्रों की आत्महत्या की संख्या में इजाफा इस बात का संकेत है कि मानसिक दबाव एवम भविष्य की चिंता छात्रों को खुद से लड़ने में अक्षम बना रही , इसलिए हमे इस न दिखने वाली समस्या से लड़ने के लिए उनकी मदद करनी चाहिए ,चाहे वो एक अभिभावक के तौर पर हो हा या शिक्षक के रूप में हो या एक सामाजिक अंग के रूप में हो हमे उनको इस महामारी से उबरने में मदद करनी होगी ताकि वो खुद आगे चलकर अपने पसंद को सपनो का आसमान चुन सके और उस आसमान में खुद के कैनवास से रंग भर सके ..हमे बस उनको थोड़ा वक्त , संवेदना  देने की जरूरत है ।।।

Author;

विवेक सिंह चौहान

 

आविवेक सिंह चौहान, इलाहाबाद विश्विद्यालय से मनोविज्ञान में मास्टर्स में अध्यनरत |