क्योंकि ग्रामीण भारत से संबंध रखता हूं और मैंने इसका सूक्ष्मता से अवलोकन किया। अतः मैं अपने उसी और दुकान से जगत ज्ञान को रखने को आधुनिक भारतीय महिलाएं यदि शहर शहरी है तो वह बाहर निकल कर नाम कमा रहे हैं अपनी पहचान बना रही है। परंतु ग्रामीण महिलाओं के जीवन से संघर्ष अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। आज यह भी गृहस्वामिनियां हैं, जमीन धारक है कामा नौकरी करती हैं तथा स्वयं अपना व्यवसाय चलाती हैं परंतु आज भी समय-समय पर इन्हें समाज व जिंदगी की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। किसी को अपने नैन नक्श की वजह से भेदभाव का सामना करना पड़ता है तो किसी को परिवार के लिए अपनी खुशियां आहूत कर देनी पड़ती हैं, किसी को दहेज हेतु प्रताड़ित किया जाता है आदि आदि। इन सब चुनौतियों के बावजूद हर मुसीबत का डटकर सामना करती हैं और आज ग्रामीण क्षेत्र में भी अग्रिम मोर्चे पर डट कर खड़ी हैं।
आज की ग्रामीण भारत में शिक्षा शिक्षा के प्रति जागरूकता, महिला शिक्षा, बालिका शिक्षा, रोजगार कॉम महिलाओं का कार्यक्षेत्र में प्रवेश कुशल तथा अकुशल दोनों तरह के कार्यों में विज्ञान का प्रचार एवं प्रसार अपने कर्तव्यों अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी है। यह उन पुरानी रूढ़ियों और विचारधाराओं के समक्ष चुनौती पेश करती हैं जो प्राचीन और घिसी पिटी हैं।
ग्रामीण भारत भी बदल रहा है मैंने स्वयं सुना है महिलाएं अपने दैनिक कार्यों के अलावा भविष्य कार्य वृत्ति पर चिंतन करते हैं। मैंने देखा है कि साड़ी पहनकर व सिंदूर लगाकर भी बचे हुए समय में पढ़ाई करती हैं। किसी दैनिक पारिश्रमिक या कार्यों का संचालन करती हैं, बाजार जा कर वहां से चीजें लाते हैं। यह सब उस सुखद सवेरे की ओर संकेत करता है जो आने वाला है।
पिछले लेख में मैंने उल्लेख किया था कि महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से कौन सी चीजें प्रभावित करती हैं। इस लेख में हम महिलाओं को कौशल व जिम्मेदारी पूर्ण कार्यों में शामिल होने व पुरुषों के साथ उनके कार्य व कार्यस्थल पर आई चुनौतियों का, कठिनाइयों का तथा उसके पीछे जिम्मेदार कारणों का विश्लेषण करेंगे।
हम बरसों से पढ़ते हैं आए हैं कि महिला तथा पुरुष एक ही रथ के दो पहिए हैं या एक ही सिक्के के दो पहलू। एक नजरिए से तो एक दूसरे के पूरक है परंतु दूसरा नजरिया इनको एक दूसरे का विरोधी बनाता है।
जिन पदों पर कभी पुरुष आसीन हुआ करते थे आज महिलाएं बेहद कुशलता के साथ वह जिम्मेदारियां निभा रहे हैं महिलाएं आजकल गांव में पीठासीन निर्वाचन अधिकारी बनकर चुनाव भी करवाती हैं, गांव में प्रधान बनकर उसका विकास और देखभाल करती हैं तथा स्कूल में प्रधानाध्यापिका बनकर स्कूल का संचालन बहुत ही समावेशी तरीके से करते हैं जिसकी, जितनी भी तारीफ की जाए कम है। महिला समूह मीना मंच स्वयं सहायता समूह एनजीओ आदि ऐसे मंच जो विशेष तौर से महिलाओं के लिए हैं। इन सब सत्ता व शक्ति के पर पर महिलाओं के आसीन होने से सिक्के का दूसरा पहलू कभी खुश नहीं हो सकता क्योंकि जिन महिलाओं को कभी परदे के अंदर रहना पड़ता था आज वही उसी के समक्ष पद पर आसीन हैं तथा समस्त नागरिक उन्हें नमस्कार करते हैं। इस प्रतिक्रिया के स्वरूप पुरुषों की अपनी अनैच्छिक और अचेतन रक्षा प्रतिक्रिया तथा वापस सत्ता धारण करने की इच्छा उन्हें महिला समाज के सम्मुख सामाजिक आर्थिक राजनीतिक मनोवैज्ञानिक चुनौतियां खड़ी करते हैं।
इसे स्पष्ट करने के लिए एक छोटा सा उदाहरण ग्रामीण विद्यालय प्रांगण में महिलाओं के लिए अलग शौचालय तथा रिस्टरूम होते हुए भी उन में तालाबंदी रहा करती हैं, गंदगी रहती है, के रूप में देखा जा सकता है। यहां पुरुष समाज इसके लिए जिम्मेदार है यह कहना सर्वथा अनुचित है किंतु ना चाहते हुए भी अचेतन रूप से वह यह सब करता है। स्टाफ रूम में शिक्षिकाएं समान पद पर होते हुए भी दूर बैठा करती हैं आदि आदि।
दूसरी तरफ देश में कोरोनावायरस की वजह से उपजे हालात से जहां पुरुष बेरोजगार हो गए हैं या लॉकडाउन के चलते अपने कार्य क्षेत्र से वापस नहीं आ सकता। वहीं महिलाओं ने भी घर पर अपने स्तर का युद्ध लड़ा है । लॉकडाउन ही नहीं घर में ही बंद रखा है जिससे या घूमने नहीं जा सकती लोगों से मिल नहीं सकती और एक तरह से अधूरे बनकर शिकार होती है। घर का सारा काम करती है सुबह से शाम तक जिसके कारण शारीरिक थकावट महसूस करनी है हमेशा घर के अंदर रहने से कह दो जैसा महसूस करती हैं जो कुंठा और तनाव का कारण बनता है। पर्दा प्रथा, अंधविश्वास आदि के कारण असुरक्षा का भाव अलग रहता है और हमें कह सकते हैं समाज के रखता या दूसरा पहिया जो पहले से ही काफी असमानता तथा असुरक्षा का सामना कर रहा था, लॉक डाउन की वजह से अब और बंदिशों का सामना करना पड़ रहा है तथा यह खुद को आंशिक रूप से स्वतंत्र पाती हैं। इसके लिए राष्ट्र स्तर पर ध्यान देना जरूरी है जो यह तय करें ग्रामीण महिलाओं की मानसिक स्थिति या पूर्ण रूप से ऊर्जावान बनी नहीं तथा वह अपने जीवन का पूर्ण रूप से आनंद ले सकें। प्रत्येक स्तर पर सामाजिक जागरूकता स्वीकार की जाए इनको पद वा शक्ति में असुरक्षा के तौर पर ना लिया जाए। जैसे शहर की महिला आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है ऐसे ही ग्रामीण महिलाओं की पद वृद्धि को सम्मानित किया जाए तथा उन्हें आगे बढ़ने का अवसर दिया जाए। उत्तर प्रदेश में मिशन शक्ति कार्यक्रम का संचालन महिलाओं की इसी गतिशीलता को पुरस्कृत करने हेतु किया जा रहा है। हम इस तरह के कार्य को प्रोत्साहित करना चाहिए।
सोमराज त्रिपाठी
सोमराज त्रिपाठी, पेशे से अध्यापक हैं। ये समावेशी कक्षा और विशेषकर पिछड़े बच्चों को शिक्षा देने का कार्य करते हैं। इन्होने बाल मनोविज्ञान, संज्ञानात्मक मनोविज्ञान तथा व्यवहारात्मक मनोविज्ञान तथा शिक्षाशास्त्र का अध्ययन किया है।